उत्तराखण्ड रानीखेत से 18 किलोमीटर की दूरी पर बिनसर महादेव मंदिर समुद्र तल से २४८० मीटर की ऊंचाई पर स्थित इस क्षेत्र का प्रमुख भव्य मंदिर है। मंदिर चारों तरफ से घने देवदार के वनों से घिरा हुआ है। मंदिर के गर्भगृह में गणोश, गौरी और महेशमर्दिनी की प्रतिमा स्थापित है। यह भगवान शिव और माता पार्वती की पावन स्थली मानी जाती है। प्राकृतिक रूप से भी यह स्थान बेहद खूबसूरत है। हर साल हजारों की संख्या में मंदिर के दर्शन के लिए श्रद्धालु आते हैं | महेशमर्दिनी की प्रतिमा पर मुद्रित नागरीलिपि मंदिर का संबंध नौवीं शताब्दी से जोड़ती है। इस मंदिर को राजा पीथू ने अपने पिता बिन्दू की याद में बनवाया था। इसीलिए मंदिर को बिन्देश्वर मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। यहां हर साल जून के महीने में बैकुंड चतुर्दिशी के अवसर पर मेला लगता है। मेले में महिलाएं पूरी रात अपने हाथ में दिए लेकर सन्तान प्राप्ति के लिए आराधना करती हैं। गढवाल जनपद के प्रसिद्ध शिवालयों श्रीनगर में कमलेश्वर तथा थलीसैण में बिन्सर शिवालय में बैकुंठ चतुर्दशी के पर्व पर अधिकाधिक संख्या में श्रृद्धालु दर्शन हेतु आते हैं तथा इस पर्व को आराधना व मनोकामना पूर्ति का मुख्य पर्व मानते हैं।
लोक मान्यताओं के अनुसार पूर्व में निकटवर्ती सौनी गांव में मनिहार लोग रहते थे। उनमें से एक की दुधारु गाय रोजाना बिनसर क्षेत्र में घास चरने जाती थी। घर आने पर इस गाय का दूध निकला रहता था। एक दिन मनिहार गाय का पीछा करने चल दिया। उसने देखा कि जंगल में एक शिला के ऊपर खड़ी होकर गाय दूध छोड़ रही थी और शिला दूध पी रही थी। इससे गुस्साए मनिहार ने गाय को धक्का देकर कुल्हाड़ी के उल्टे हिस्से से शिला पर प्रहार कर दिया | इससे शिला से रक्त की धार बहने लगी। उसी रात एक बाबा ने स्वप्न में आकर मनिहारों को गांव छोड़ने को कहा और वह गांव छोड़कर रामनगर चले गए।
ग्रामीणों के अनुसार सौनी बिनसर के निकट किरोला गांव में एक 65 वर्षीय नि:संतानी वृद्ध थे। उन्हें सपने में एक साधु ने दर्शन देकर कहा कि कुंज नदी के तट की एक झाड़ी में शिवलिंग पड़ा है। उसे प्रतिष्ठित कर मंदिर का निर्माण करो। उस व्यक्ति ने आदेश पाकर मंदिर बनाया और उसे पुत्र प्राप्त हो गया। पूर्व में इस स्थान पर छोटा सा मंदिर स्थापित था। वर्ष 1959 में श्री पंच दशनाम जूना अखाड़ा से जुड़े ब्रह्मलीन नागा बाबा मोहन गिरि के नेतृत्व में इस स्थान पर भव्य मंदिर का जीर्णोद्घार शुरू हुआ। इस मंदिर में वर्ष 1970 से अखंड ज्योति जल रही है। मंदिर की व्यवस्थाएं देख रहे 108 श्री महंत राम गिरि महाराज ने बताया कि यहां श्री शंकर शरण गिरि संस्कृत विद्यापीठ की स्थापना की गई है।
वन्य जीव अभयारण्य
बिनसर वन्य जीव अभयारण्य में तेंदुआ पाया जाता है। इसके अलावा हिरण और चीतल तो आसानी से दिखाई दे जाते हैं। यहां २०० से भी ज्यादा तरह के पंक्षी पाये जाते हैं। इनमें मोनाल सबसे प्रसिद्ध है ये उत्तराखंड का राज्य पक्षी भी है किन्तु अब ये बहुत ही कम दिखाई देता है। अभयारण्य में एक वन्य जीव संग्रहालय भी स्थित है।