उत्तराखंड की अलौकिक हिमालयी गोद में स्थित विश्वविख्यात श्री बद्रीनाथ धाम के कपाट 4 मई 2025 रविवार को प्रातः विधि-विधान और श्रद्धालुजनों की उपस्थिति में भव्य रूप से खोले गए। जैसे ही मंदिर के रावल (मुख्य पुजारी) ने वैदिक मंत्रोच्चार के साथ कपाट खोले, पूरे वातावरण में दिव्यता और श्रद्धा की अनुपम अनुभूति फैल गई। यह क्षण उन हजारों श्रद्धालुओं के लिए अत्यंत भावुक और अद्भुत था, जिन्होंने इस दिव्य दर्शन की प्रतीक्षा की थी।
इस वर्ष मंदिर को लगभग 40 क्विंटल ताजे फूलों से अत्यंत भव्यता से सजाया गया था। फूलों की सुगंध से संपूर्ण परिसर सुरभित हो उठा और रंग-बिरंगे फूलों की साज-सज्जा ने मंदिर को स्वर्गिक रूप प्रदान किया। जैसे ही कपाट खुले, ऊपर से हेलिकॉप्टर द्वारा पुष्प वर्षा की गई, जिसने भक्तों के स्वागत को और भी अलौकिक बना दिया। पुष्पों की वर्षा के बीच जब “जय बद्रीविशाल” के जयकारे गूंजे, तब समूचा वातावरण भक्ति और आस्था में डूब गया।
इस पावन अवसर पर उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी भी धाम पहुंचे और भगवान बद्रीविशाल की पूजा-अर्चना की। उन्होंने तीर्थयात्रियों का स्वागत करते हुए कहा, “मैं भगवान बद्रीनाथ से प्रार्थना करता हूं कि यह यात्रा सभी श्रद्धालुओं के लिए मंगलमय, सुरक्षित और सुखद रहे। हम सरकार की ओर से हर संभव व्यवस्था कर रहे हैं ताकि श्रद्धालुओं को किसी प्रकार की असुविधा न हो।”
ध्यान देने योग्य है कि कपाट खुलते ही देश-विदेश से आए हजारों श्रद्धालुओं की भीड़ धाम में उमड़ पड़ी। भक्तगण हाथों में नारियल, फूल और पूजा की थाल लिए भगवान के दर्शन हेतु पंक्तिबद्ध खड़े दिखे। महिलाओं द्वारा गाए गए लोकगीतों और गढ़वाल राइफल्स की धुनों ने इस धार्मिक अनुष्ठान को और अधिक जीवंत कर दिया।
बद्रीनाथ धाम हिंदू धर्म के चारधामों में एक प्रमुख तीर्थ स्थल है। शीतकाल में जब यह धाम बर्फ से ढक जाता है, तब मंदिर के कपाट बंद कर दिए जाते हैं। गर्मियों के आगमन पर हर वर्ष अप्रैल-मई में विधिवत पूजा-पाठ के बाद कपाट खोले जाते हैं और श्रद्धालु छह माह तक भगवान विष्णु के अवतार बद्रीविशाल के दर्शन कर सकते हैं।
इससे पूर्व गंगोत्री, यमुनोत्री और केदारनाथ धाम के कपाट भी क्रमशः 30 अप्रैल और 2 मई को खोले जा चुके हैं। अब चारों धाम खुलने के साथ ही चारधाम यात्रा पूर्ण रूप से आरंभ हो चुकी है।
बद्रीनाथ धाम की यह प्रथम झलक और आध्यात्मिक अनुभव श्रद्धालुओं के लिए अविस्मरणीय बन गया है। यह आयोजन न केवल धार्मिक श्रद्धा का प्रतीक है, बल्कि उत्तराखंड की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विरासत का साक्षात दर्शन भी कराता है।
इस तरह चारधाम यात्रा अब पूरी तरह आरंभ हो गई है।