भगवान ने ब्रह्माण्ड रूपी शरीर बनाया और समस्त देवता आकर इसमें स्थित हो गए; किन्तु तब भी ब्रह्माण्ड में चेतना नहीं आई और वह विराट् पुरुष उठा नहीं । किंतु जब चित्त के अधिष्ठाता देवता ने चित्त में प्रवेश किया तो विराट् पुरुष उसी समय उठ कर खड़ा हो गया । इस प्रकार भगवान संसार में सभी क्रियाओं का संचालन करने वाले देवताओं के साथ इस शरीर में विराजमान हैं।
अब मनुष्य का कर्तव्य है कि वह भगवान द्वारा बनाए गए इस देवालय को कैसे साफ-सुथरा रखे ? इसके लिए निम्न कार्य किए जाने चाहिए—
१. नकारात्मक विचारों और मनोविकारों—काम, क्रोध, लोभ, मोह, ईर्ष्या, अहंकार से दूर रहें।
२. योग साधना, व्यायाम व सूर्य नमस्कार करके अधिक से अधिक पसीना बहाकर शरीर की आंतरिक गंदगी दूर करें ।
३. अनुलोम-विलोम व सूक्ष्म क्रियाएं करके ज्यादा से ज्यादा शुद्ध वायु का सेवन करें ।
३. शुद्ध सात्विक भोजन सही समय पर व सही मात्रा में करके पेट को साफ रखें ।
४. ज्यादा-से-ज्यादा पानी पीकर अपने शरीर रूपी देवालय को शुद्ध (डिटॉक्स detox) करें ।